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What is Digestive system

पाचन तंत्र (Digestive System) –

किसी भी जीव द्वारा भोजन करने के बाद उस भोजन को पचाने में और उसे त्यागने में जितने भी तंत्र का इस्तेमाल किया जाता है उसे पाचन तंत्र कहते है। ये पाचन तंत्र शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हर तंत्र का भोजन पचाने में अलग अलग योगदान होता है। जब भोजन का पाचन सही से होता है तो लोगो को इससे विटामिन और ऊर्जा की प्राप्ती होती है। यदि ये पाचन तंत्र सही से काम न करे तो भोजन पचेगा नही और आप बीमारीयों से घिर जायेगें।मनुष्य के बाडी पार्ट के इस भाग में हम पाचन तंत्र के बारे में बात करेगें।

पाचन क्या है(What is the Digestive System)-

पाचन एक ऐसी फिजिकल और किमिकल प्रक्रिया है जिसके द्वारा ऊर्जा का निर्माण होता है। हमारे भोजना का पाचन दो तरह से होता है।

पाचन तंत्र-

जब कोई व्यक्ति भोजन ग्रहण करता है ये पाचन तंत्र उनको विभिन्न छोटो छोटो भागो में तोड़ कर एक दम छोटा कर देते है। आइये जानते है जो भोजन आप करते है उनको छोटा करने के पाचन योग्य बनाने में किसका योगदान है। हमारा यह पाचान तंत्र विभिन्न भागो से मिल कर बना है।

1-आहारनाल alimentary canal-

इसकी लम्बाई 32 फीट या 9 मीटर होता है। यह मुंख से प्रारम्भ होकर गुदा तक फैला होता है।

2-मुखगुहा Buccal cavity-

यह आहार नाल का पहला भाग होता है। जहां पर भोजन को छोटे छोटो टुकड़ो में विभाजित किया जाता है। भोजन को छोटे छोटे टुकड़ो मे विभाजित करने के लिए मुंख के विभिन्न पार्ट सहायता करते है जैसे -दांत,जीभ,ओठ,जबड़ा।

मुंख Mouth-

जैसे ही आप भोजन को ग्रहण करते है वैसे ही मुंख में उपस्थित ये ग्रंथिया एक्टिव हो जाती है। जो लार का उत्पदान करती है ये लार एक दिन 1 से डेढ़ लीटर बनता है। इन लार में लाइसोजाइम,टायलिन,डाइस्टेज औऱ म्यूकस पाया जाता है। ये मुख्य रुप दो प्रकार की होती है।

लघु या सहायक लार ग्रंथियाँ minor or accessory salivary glands-

पूरे मुंख मे 800 से 1000 लघु या सहायक लार ग्रिथियाँ होती है। जो ओठ,गाल,जीभ पर ढँकी श्लेष्मिका में उपस्थित अनेक छोटी–छोटी सीरमी एवं श्लेष्मिका ग्रन्थियाँ होती हैं जो इन सतहों को गीला करती है.

वृहद या प्रमुख लार ग्रंथियाँ  major glands –

ये ग्रंन्थियाँ पिण्डकीय और बहुकोशिकीय होते है और जबड़े के दोनो किनारे पर सममित रुप में स्थित होते है। यह निम्नग्रंथियो को संग्रहित किये हुए है जैसे कर्णमूल या पैरोटिड लार ग्रंथि,अधोहनु या सबमैक्सिलरी लार ग्रंथि, अधोजिह्वा सबलिंगुअल ग्रंथि।

3-कर्णमूल या पैरोटिड लार ग्रंथि(Parotid Gland)-

यह सबसे बड़ी ग्रंथि है। प्रत्येक की लम्बाई 6 सेमी और चौड़ा 3- 4 सेमी और वजन 30 ग्राम होता है। इसको सीरम के नाम से जाना जाता है। यह मुंखगुहा में 20 प्रतिशत लार को स्रावित करती है। ये भोजन को चबाने में मदद करती है। जिससे भोजन आसानी से छोटे छोटे टुकड़ो में विभिक्त होता है।

4-अधोहनु या सबमैक्सिलरी लार ग्रंथि( Submandibular Gland)-

यह जबड़ो में स्थित होता है। यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रंथि है यह लार का 65 से 70 प्रतिशत उत्पादन करता है। यह सीरम और बलगम ग्रंथि का मिश्रण है। यह सबमैण्डीबुलर नलिकाओं के माध्यम से स्रावित होता है। यह पोरोटिड ग्रंथि के तुलना में अधिक चिपचिपा होता है।

5-अधोजिह्वा सबलिंगुअल ग्रंथि-

यह सबसे छोटी लार ग्रंथि है।यह जीभ के नीच मुंखगुहा में स्थित होता है। यह लार का 5 प्रतिशत भाग प्रदान करता है। यह सबलिंगुअल डक्टस की मदद से निकलता है। यह भी चिपचिपा होता है।

6-ग्रसनी Gross –

यह मुख के पीछे जो ग्रासनली और श्वास नली के ऊपर स्थित होता है। इसका काम होता है भोजन व वायु को क्रमशः ग्रसिका और स्वरयंत्र में ले जाना।

7-ग्रासनली Esophagus-

इस नली को भोजन नली,ग्रासनाल या ग्रसिका के नाम से भी जानते है। मेडिकल भाषा में इसोफेगस के नाम से जानते है। इसकी लम्बाई लगभग 25 सेंटीमीटर होती है। यह मुंख के पीछे ग्रसनी से शुरु होता है और आमाशय के ऊपरी भाग में जुड़ती है। ग्रासनली की सहायता से भोजन आमाशय तक पहुँचता है।

8-आमाशय (Stomach)-

यह ग्रासनली से शुरु होकर छोटी आँत तक जाता है। यह शरीर के बाये हिस्से में होता है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग होता है। यह पर भोजन 3 से 4 घंटा तक रहता है। इसकी लम्बाई 25 से 30 सेमी होती है जो थैली नुमा होता है। इसकी चौड़ाई भोजन के अनुसार बढ़ती या घटती रहती है। इसको 3 भागो में बाटा गया है।

1-कार्डिएक cardiac –

आमाशय के ऊपरी भाग को कार्डिएक कहते है इसमें जैसे ही बोलस पहुंचता है वैसे ही HCl निकलने लगता है। यह एक एसिड होता है इसका काम होता हानिकारक जीवाणु को मारना और जो बोलस कार्डिएक में आता है उसको और छोटे-2 पार्ट में तोड़ देता है।

2-फण्डिक  Fundic-

फण्डिक का स्थान कार्डिएक के बाद आता है। इसकी जो संरचना होती है वह कांटे नुमा होता है जब बोलस कार्डिएक से आगे बढ़ता है तो इस कांटे वाली संरचना में रुक जाता है यहां से वह धीर -2 आगे बढ़ता है। जो कांटे नुमा संरचना होती है रुजी कहते है।

पाइलोरिक-

इसका स्थान फण्डिक के बाद होता है इसम जठर ग्रंथि पायी जाती है जिससे जठर रस निकलता है। यह जठर रस दो रसो से मिलकर बना होता है जिसको रेनिन और पेप्सीन के नाम से जानते है। पेट से भोजन छोटी ऑत में जाता है उसको काइम कहते है।

9-छोटी ऑत( Small Intestine)-

यह आहारनाल में पेट के बाद आता है। इससे पहले ग्रहणी या पक्वाश होता होता जो अंग्रेजी के U अक्षर के समान होता है और यह ग्रहणी 25 सेमी लम्बा होता है।छोटी ऑत का शेष भाग(अंतिम भाग) को इलियम कहा जाता है। यह इलियमे 30 सेमी लंबा होता है। इसी के अंदर भोजन का पाचन और अवशोषण दोनो होता है। इलियम के अंदर एक एन्जाइम पाया जाता जो प्रोटीन(पेप्टाइड के नाम से जानते है) को एमीनो एसीड में बदल देता है।

छोटी ऑत के ऊपरी भाग से सेक्रेटिन नामक हार्मोन छोड़ा जाता है ताकी अग्नाशय एन्जाइम छोड़ सके। इसके अलावा छोटी ऑत द्वारा कोलेसिस्टोकाइनीन नामक एक और हार्मोन छोड़ा जाता है ताकि पित्त निकल सके।

छोटी ऑत का सबसे आखरी भाग जिसमे इलियम कहते है उसमें उंगली नुमा संरचना पाया जाता है जिसको विलायी कहते है इसका काम होता है भोजन का अवशोषण करना।

10-बड़ी ऑत large intestines –

इसको कोलोन के नाम से जानते है। जो जल का अवशोषण का काम करता है।

बड़ी आत का काम छोटी आंत के बाद होता है क्योकि बड़ी ऑत का शुरु का हिस्सा जिसको सीकम कहते है वह छोटी आंत से मिला होता है। यही पर एपेन्डिक्स होता जिसको हम अवशेषी अंग के नाम से जानते है। कोलोन के अंतिम हिस्से को रेक्टम या मलाशय के नाम से जानते है। इसके अंदर ऑत से आने वाले अपशिष्ट पदार्थ जिसको हम काइल के नाम से जानते है वह स्टोर रहता है।

11-गुदा Anus-

यह पाचन तंत्र का अंतिम हिस्सा होता। जिसके द्वारा काइल (अपशिष्ट पदार्थ) या मल बाहर निकलता है। यह सेमी लम्बा होता है।

विविध-

  • सांप मे जहर का काम पैरोटिड ग्रंथि करती है।
  • मुंख से आये हुए भोजन को बोलस कहते है।
  • ग्रासनली में होने वाले संक्रमण को इसोफेजियल कैंडिडायसिस या इसोफेजियल थ्रश के नाम से जानते है। इन नली में मुख्य रुप से संक्रमण कैंडिडा अल्बिकन्स के नाम से जाना जाता है।
  • ग्रासनली में पाचन की क्रिया नही होती है।
  • ग्रासनली से भोजन को धीर-2 जाने को क्रमानुकुचन कहलाता है।
  • ग्रासनली के शीर्ष पर ऊतकों का एक पल्ला होता है जिसको एपिग्लॉटिस कहते है।
  • ग्रासनली से भोजन आमाशय तक जाने में 7 सेकेण्ड का समय लगता है।
  • दूध से दही बनाने के लिए रेनिन की आवश्यकता पड़ती है।
  • प्रोटीन को तोड़ने का काम पेप्सीन करता है।
  • एमाइलेज स्टार्च का पाचन करता है।
  • टेप्सीन प्रोटीन(पेप्टोन) को पेप्टाइड में बदल देता है।
  • पूर्ण पाचक एन्जाइम अग्नायशय छोड़ता है।
  • पित्त भोजन को छारिय करता है।
  • वसा को पचाने की क्रिया को इमलशिफिकेशन कहते है
  • पित्त एन्जाइम न होते हुए भी पाचन का काम करता है।

क्या आप पित्ताशय के बारे में जानते है  Do you know about the gallbladder

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