काकोरी कांड (kakori kand) –
कोकोरी कांड आखिर इस समय इसका नाम क्यो लिया जा रहा है ऐसी कौन सी बात हो गयी है जो घटना 1925 में घटी थी उसको इस समय उभारा जा रहा है। आइये जानते है इस समय Kakori kand सुर्खियो में क्यो है
उत्तर प्रदेश की सरकार-
Kakori kand भारत के इतिहास में हुए क्रांतीकारी घटनाओं में से एक है। क्रांतिकारियो तब काफी झटका लगा जब गांधी जी ने 1922 में असहयोग आंन्दोलन वापस ले लिया क्रांतिकारियो को लगा कि अब देश को आजाद कराने के लिए हथियार उठाना पड़ेगा। हथियार लाने के लिए पैसो की जरुरत पड़ेगी।
जिसके वजह से काकोरी का यह घटना हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि यह कोई कांड नही था देश वो आजाद कराने के लिए किया गया एक प्रयास था। इसलिए अब इसे काकोरी कांड नही बल्की काकोरी ट्रेन ऐक्शन कहा जायेगा।
काकोरी कांड के चार अमर बलिदान –
काकोरी कांड में सामिल चार क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिणी जिनक फांसी की सजा हुयी
इस घटना में कई क्रांतीकारी लोग सामिल थे जिसमें सबसे प्रमुख रुप से राम प्रसाद बिस्मिल,चन्द्र शेखर आजाद और अशफाक उल्ला खाँ थे इनके अलावा और भी लोग थे जो निम्न प्रकार है जिनको सजा भी हुयी।
योगश चन्द्र चटर्जी | प्रेम कृष्ण खन्ना | मुकुन्दी लाल |
विष्णुशरण दुब्लिश | सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य | राम कृष्ण खत्नी |
मन्मथनाथ गुप्त | राजकुमार सिन्हा | ठाकुर रोशन सिंह |
राजेन्द्र नाथ लाहिणी | गोविन्द चरण कार | राम दुलारे त्रिवेदी |
रामनाथ पाण्डेय | शचीन्द्रनाथ सान्याल | भुपेन्द्रनाथ सान्याल |
प्रणवेश कुमार चटर्जी | बनवारी लाल |
काकोरी का यह घटना 9 अगस्त 1925 को हुई थी।
यह घटना 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ में हुयी थी।
क्रांतीकारीयो को यह बात पहले से ही पता था दिन भर का रेवेन्यू इकट्ठा कर इसको लखनऊ में जमा किया जाता था।
क्रांतीकारीयो के पास जर्मनी मेड चार माउजर तथा कुछ पिस्तौल थे।
काकोरी कांड की जांच स्कॉटलैंड पुलिस ने किया था।
जांच दल का नेतृत्व सीआईडी इंस्पेक्टर तसद्दूक हुसैन ने की थी।
शाहंजहांपुर के बनारसी लाल का चादर घटना स्थल पर छूटने के कारण लोग पकड़े गये।
Kakori kand के इस घटना में शक के आधार पर 40 लोगो को गिरफ्तार किया गया।
क्रांतीकारीयो द्वारा ट्रायल के दौरान मेरा रंग दे बंसती चोला तथा सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में गाकर लोगो में एक नया जोश पैदा कर दिया था।
काकोरी कांड का मुकदमा 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला।
लखनऊ का प्रधानडाक घर आज कल इसी मे है।
मन्मथनाथ गुप्त के द्वारा गोली चलाने की वजह से एक मुसाफिर की मौत हुयी थी।
इस मुकदमे में अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा हुयी।