एलिवेटेड ट्रैक-
जाम की समस्या से जूझ रही जनता को तथा क्रासिंग की वजह से हो रही दिक्कतो से निजात दिलाने के लिए एलिवेटेड संरचना का प्रयोग होने लगा। एलिवेटेड ट्रैक के निर्माण में भुमि का अधिग्रहण न के बराबर किया जाता है। इस तरह के ट्रैक के निर्माण से दुर्घटनाओं को कम करने के लिए किया जाता है इस तरह के ट्रैक के निर्माण में लोहा, स्टील, कंकरीट तथा सीमेन्ट आदि का प्रयोग किया जाता है क्योकि इस तरह के ट्रैक के निर्माण में पिलर का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इस तरह के ट्रैक का निर्माण अरबन एरिया में किया जाता है जहां पर जाम न लगे।
एलिवेटेड संरचना का प्रयोग जनरल ट्रैन,मैट्रो ट्रेन,बुलेट ट्रैन, डेमू ट्रेन, मेमो ट्रेन , मालीगाड़ी के लिए किया जाता है।
अधिकत्तर एलिवेटेड संरचना का प्रयोग मैट्रो ट्रेन के लिया किया जाता है क्योकि मैट्रो ट्रेन मेट्रोपॉलिटन शहरों में चलती है जहां पर जाम की समस्या अधिकत्तर रहती है जिससे निजात पाने के लिए एलिवेटेड संरचना का प्रयोग करते है।
एलिवेटेड ट्रैक का प्रयोग क्यो किया जाता है-
जनरल ट्रैन, ,डेमू ट्रेन, मेमो ट्रेन , मालीगाड़ी के लिए एलिवेटेड संरचना का प्रयोग तब किया जाता है जब इनके ट्रैक के बीच में कोई नाला,नदी आ जाता है या बहुत अधिक जाम लगता है।
एलिवेटेड संरचना का इतिहास-
दुनिया का पहला एलिवेटेड संरचना लंदन में तैयार किया गया था। जो लंदन और ग्रीनविच शहरो को जोड़ने के लिए 1836 से 1838 के बीच बनाया गया था।
भारत में पहला एलिवेटेड ट्रैक-
भारत में पहला एलिवेटेड ट्रैक हरियाणा राज्य में रोहतक से गोहान तक बना है। इसकी नीव 2016 में भारतीय रेलवे मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा रखी गयी थी। 2018 में मनोहर लाल खट्टर द्वारा निर्माण कार्य शुरु करावाया गया। करीब ढाई वर्षो में यह बन कर तैयार हो गया। 4.8 किलोमीटर लंबा है यह एलिवेटेड ट्रैक को खड़ा करने में 200 पिलर का प्रयोग किया गया है। इसे बनने में 315 करोड़ खर्च हुआ है।