Respiratory system श्वसन तंत्र-
Lungs(फेफड़ा)-
फेफड़ा मानव शरीर का सबसे जरुरी अंग है क्योकि मनुष्य इसी द्वारा सांस लेता है इसलिए इसको श्वसन तंत्र respiratory system भी कहते है। यह श्वसन तंत्र शरीर में एक है वह फेफड़ा इसके अलावा कोई और नही है। इसको विभिन्न नामो से जानते है जैसे- लंग,फुफ्फुस आदि। यदि आप सोचते होगें कि नॉक के रास्ते हम सांस लेते है तो नॉक हमारा श्वसन तंत्र है तो आप गलत है क्योकि नांक को बंद करके मुंख के रास्ते भी हम सांस ले सकते है। नॉक और मुंख एक माध्यम है सांस लेने के लिए ।
श्वशन क्या है What is Respiratory .-
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो 24 घंटे तक चलता है यह अलग अलग जीवो में अलग अलग तरीके से होता है। ये दो प्रकार के होते है ऑक्सी और अनाक्सी श्वसन। आक्सी श्वसन क्रिया में 38 ATP के रुप में ऊर्जा का उत्पादन होता है। जबकि अनाक्सी में 2 ATP की ऊर्जा का उत्पादन होता है। आइये जानते है कौन से जीव किसके माध्यम से श्वस लिया जाता है।
मनुष्य श्वसन तंत्र Respiratory system-
मनुष्य एक स्तनधारी जीव है जो श्वसन की प्रक्रिया फेफड़े के माध्यम से करता है।
कीट-
कीट जो होते है वह डायरेक्ट रुप से श्वासनली से ही सांस लेते है।
जलीय जीव-
ये गिल(गलफर) से सांस लेते है।
मेढ़क श्वसन तंत्र Respiratory system-
मेढक तीन तरह से सांस लेता है।
मेढक जब पैदा होता है तो गिल से सांस लेता है लेकिन जब बड़ा हो जाता है तब यह यदि पानी या जमीन पर रहता है तब फेफड़े से सांस लेता है लेकिन जब यह जमीन के अंदर रहता है तब त्वचा से सांस लेता है।
श्वासोच्छवास(Breathing)-
मनुष्य जब सांस लेता है और उसे बाहर करता है तो इस प्रक्रिया को श्वासोच्छवास कहते है ब्रीथिंग में मनुष्य विभिन्न प्रकार के गैसो को अंदर लेता है और बाहर भी करता है जैसे-
ब्रिथिंग करते समय-
जब व्यक्ति सांस को अंदर लेता है तो इस प्रक्रिया को निश्वसन कहते है इस प्रक्रिया में नाइट्रोजन 78 प्रतिशत आक्सीजन 21 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड 0.23 प्रतिशत होता है
ब्रिथिंग छोड़ते समय –
जब व्यक्ति सांस को बाहर छोड़ता है तो इस प्रक्रिया को निःश्वसन कहते है इस प्रक्रिया में मनुष्य नाइट्रोजन 78 प्रतिशत ऑक्सीजन 17 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड 4 प्रतिशत होता है।
श्वसन तंत्र-
शरीर के विभिन्न पार्ट की सहायता से यह हवा हमारे फेफड़ो तक पहुचता है आइये जानते है वह कौन कौन से पार्ट है जो शरीर की सहायता करते है हवा को फेफड़ो तक पहुंचने में –
नाशा छिद्र-
यह वायु मार्ग का प्रवेश द्वार होता है जहां से हवा प्रवेश करता है। यहां पर जब हवा प्रवेश करता है तब हवा के साथ विभिन्न प्रकार के गंदगी होती है इन गंदगी को नाशा छिद्र में मौजुद बाल इनको छान कर आगे भेज देता है।
नाशा कपाट-
नाशा छिद्र के बाद वाले भाग को नाशा कपाट कहते है। यहीं म्युकस पाया जाता है। म्युकस का काम होता है नाक के रास्ते जो धूल कण प्रवेश करते है उनको अपने से चिपका कर अन्दर जाने से रोकना।
ग्रसनी-
यह आहारनाल औऱ श्वसन दो का कामन अंग है ग्रासनली के शीर्ष पर ऊतकों का एक पल्ला होता है जिसे एपिग्लॉटिस कहते हैं जो निगलने के दौरान के ऊपर बंद हो जाता है जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश न कर सके।
स्वरतंत्र-
ग्रसनी के बाद स्वरतंत्र आता है जिसके प्रयोग से मनुष्य विभिन्न प्रकार की ध्वनियो को बोल पाता है।
श्वासनली-
यह कठ से लेकर वक्षगुहा तक फैला रहता है। इस नली को सपोर्ट C आकार उपस्थिया(लचीली हड्डी) सहारा प्रदान करती है। इसकी लम्बाई 12 सेमी होती है। स्वासनली में उपस्थित उपकला श्लेष्मा का निर्माण करती हे जो वायु को शुद्ध कर फेफड़ों तक पहुंचाता है। यह स्वासनली आगे चलकर दो भाग में विभिक्त हो जाती है। एक भाग दाये फेफड़े में दूसरा बाये फेफड़ चला जाता है। जब यह श्वासनली दो भागो में बट जाती है तो इसको ब्रोनकाई कहते है। यह ब्रोनकाई आगे चलकर और कई भागो में बट जाता है जिसको ब्रोनक्योलेस कहते है। इन ब्रोनक्योलेस के ऊपर गुच्छा होता है जिसको वायुकोष्ठक कहते है। यहां से जो वायु होता है वह रक्त में चला जाता है। यह रक्त इनको कोशिकाओं में भेज देता है। ये कोशिका इनको माइटोकान्ड्रिया को देगा। इसी माइटोकान्ड्रिया में ग्लूकोज का निर्माण होता है।
फेफड़े(Lung)-
इसको फुफ्फुस के नाम से जानते है। इनकी संख्या हमारे शरीर में दो होती है। यह हड्डीयो के पिजड़ने के नीचे और डायफ्राम के ऊपर होता है। इसमे दाया फेफड़ा बाये फेफड़े से थोड़ा बड़ा होता है। महिलाओं की तुलना मे पुरुषो के फेफड़ो में ज्यादा हवा स्टोर हो सकता है। फेफड़े के हिस्सों को परलिका या लोब कहते है।
डायफ्राम(Diaphragm)-
यह श्वसन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह फेफड़े के निचे स्थित होता है। इसमे हार्मोन नही होते है। जब यह सिकुड़ता है तो हवा फेफड़े में प्रवेश करती है और जब यह फुलता है तो हवा फेफड़े से बाहर निकलती है।
विविध-
फेफड़ो में वायु कुपिकाओं के द्वारा गैसो का आदान प्रदान होता है। एक व्यस्क पुरुष में 30 से 40 करोड़ वायु कुपिकाये होती है।
मनुष्य का दाया फेफड़ा तीन पिंडो में तथा बाया फेफड़ा 2 पिंडो में विभाजित होता है।
फेफड़े की सुरक्षा हेतु दोहरी झिल्ली होती है जिसको प्ल्यूरा मेम्बरेन कहते है।
भोजन निगलते समय सांस मार्ग को एपिगलाटीस सांस मार्ग को बंद करता है।
ग्लाइकोलिसिस आक्सी या अनाक्सी दोनो में होता है इस प्रक्रिया में गुलकोज पायरविक में तोड़ा जाता है। इस विखंडन में 2 ATP की ऊर्जा का उत्पादन होता है।
श्वसन के द्वारा सर्वाधिक मात्रा में नाट्रोजन(78%) लिया भी जाता है और सर्वाधिक मात्रा (78%) में छोड़ा भी जाता है।
फेफड़े में अधिकतम 5 लीटर गैसे धारण कर सकते है।
श्वासनली का पहली बार प्रत्यारोपण स्पने में 2008 में किया गया था।
मुंख से लिया गया सांस उतना शुद्ध नही होता है जितना नांक के द्वारा लिया गया सांस होता है।
एम्फिसेमा बिमारी फेफड़े से सम्बन्धि है। यह बिमारी अधिक सिगरेट पिने से होता है। जिसकमें कुपिका क्षतिग्रस्त हो जाती है और गैसीय आदान प्रदान प्रवाहित हो जाता है।
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